केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक फैसले में स्पष्ट किया कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 (RTI Act) की धारा 7 के तहत किसी पब्लिक इन्फॉर्मेशन ऑफिसर (PIO) के पास RTI आवेदनों के निस्तारण के दौरान कोई जांच शुरू करने की शक्ति या कर्तव्य नहीं है। यह निर्णय जस्टिस एन. नागरेश ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपने प्राचार्य पद पर नियुक्ति को मंजूरी देने का निर्देश मांगा था। याचिकाकर्ता को विधिवत चयन प्रक्रिया और यूनिवर्सिटी की मंजूरी के बाद कॉलेज का प्राचार्य नियुक्त किया गया था। बाद में यूनिवर्सिटी ने उस मंजूरी को वापस लेने और याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का फैसला किया यह आरोप लगाकर कि जब वह कॉलेज में पब्लिक इन्फॉर्मेशन ऑफिसर थे तब उन्होंने एक स्टूडेंट की डिग्री प्रमाणपत्रों की सत्यता की जांच नहीं की, जब उस पर RTI आवेदन आए थे।
कोर्ट ने स्पष्ट किया, “जब याचिकाकर्ता पब्लिक इन्फॉर्मेशन ऑफिसर थे और उन्होंने RTI आवेदन प्राप्त किए तो उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के अनुसार कार्य किया। RTI आवेदनों के निस्तारण में याचिकाकर्ता की ओर से कोई लापरवाही नहीं पाई गई। यह आरोप कि उन्हें आवेदन मिलने पर जांच करनी चाहिए थी, स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि न तो वह उस शिकायत से निपटने के लिए सक्षम अधिकारी थे और न ही उनके पास किसी जाली दस्तावेज़ की कोई विशिष्ट शिकायत आई थी। इसलिए RTI Act की धारा 7 के तहत जांच शुरू करना उनका कानूनी कर्तव्य नहीं था।” कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मान भी लिया जाए कि कोई एकल घटना लापरवाही की थी, तब भी वह एक वैध चयन प्रक्रिया के माध्यम से की गई नियुक्ति को मंजूरी न देने का आधार नहीं बन सकती। न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता की अंतरिम आदेश के अनुसार की गई अस्थायी नियुक्ति को स्थायी मंजूरी दी जाए।
केस टाइटल: डॉ. मुहम्मद ताहा बनाम कॉलेजिएट एजुकेशन निदेशक व अन्य