इस अधिनियम के अधीन नागरिक को सूचना का अधिकार दिया गया है, जिसका तात्पर्य सभी लोक प्राधिकारियों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। सूचना के अधिकार को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, इसमें कार्यों, दस्तावेजों और अभिलेखों का निरीक्षण करने और दस्तावेजों/अभिलेखों/नमूनों का टिप्पण, उद्धरण या प्रमाणित प्रतियाँ लेने तथा मुद्रित या इलेक्ट्रानिक प्ररूप में सूचना, उदाहरणार्थ प्रिंट आउट, डिस्केट, फ्लापो, टेप इत्यादि अभिप्राप्त करने का अधिकार शामिल है।
लेकिन, दो शर्तें नागरिक द्वारा अधिनियम के अधीन कोई अधिसूचना अधिप्राप्त करने के लिए पूरी को जानी चाहिए:- प्रथमतः सूचना लोक प्राधिकारी द्वारा धारण की जानी चाहिए या लोक प्राधिकारी के नियन्त्रण के अधीन होनी चाहिए और द्वितीयतः सूचना अधिनियम के अनुसार प्रकटन से मुक्त नहीं होनी चाहिए। कोई नागरिक अधिनियम के अधीन लिखित में अनुरोध करके इस अधिकार का प्रयोग कर सकता है। सूचना को इस आधार पर इन्कार नहीं किया जा सकता है कि यह लोक प्राधिकारी की पहुँच में नहीं है।
न्यायाधीशों द्वारा टिप्पणी या संकेत टिप्पणी या उनके प्ररूप निर्णय को लोक प्राधिकारी द्वारा धारण की गयी सूचना होना नहीं कहा जा सकता। यह बात सेक्रेटरी जनरल, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इण्डिया बनाम सुभाष चन्द्र अग्रवाल, ए आई आर 2010 के मामले में कही गई है। सूचना के अधिकार के अधीन प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का अधिकार आता है। सूचना का अर्थ सूचना से कोई सामग्री अभिप्रेत है, जो लोक प्राधिकारी द्वारा अभिलेखों, दस्तावेजों ज्ञापनों, ई-मेल, रायों, सलाहों, समाचार विज्ञप्ति, परिपत्रों, आदेशों, कार्य पंजियों, संविदाओं, रिपोर्टों, कागजातों, नमूनों, प्रदर्शों के इलेक्ट्रानिक प्ररूप में आंकड़े के रूप में धारित है। अभिलेख सूचना के महत्वपूर्ण संघटकों में से एक हैं और इसमें शामिल हैं:-
(क) कोई दस्तावेज, पाण्डुलिपि या फाइल (ख) दस्तावेज की कोई लघु फिल्म या फोटो प्रति (ग) लघु फिल्म में अन्तर्विष्ट प्रतिबिम्ब को कोई प्रति; तथा (घ) कम्प्यूटर या किसी अन्य युक्ति द्वारा उत्पादित कोई अन्य सामग्री। शब्द ‘सूचना’ अत्यधिक व्यापक है क्योंकि यह अभिलेखों, दस्तावेजों, ज्ञापनों, ई-मेलों, रायों, सलाहों, प्रकाशनार्थ विज्ञप्तियों, परिपत्रों, आदेशों इत्यादि को शामिल करता है। यह तथ्य यूनियन ऑफ इण्डिया बनाम आर० एस० खान 2011 के मामले में प्रस्तुत किए गए हैं।
जब व्यक्ति किसी अन्य के लिए सूचना को एकत्रित करने के लिए अनुरोध करता है, जो लोक प्राधिकारी द्वारा धारित है, तो यह कहा जाता है कि आवेदन पर पक्षकार को अन्तर्ग्रस्त करता है। इस पद में न केवल लोक प्राधिकारी वरन् वैयक्तिक निकाय या नागरिक से भिन्न व्यक्ति भी शामिल हैं। सहकारी समिति के ग्राहकों के सम्बन्ध में सूचना को सासोइटी द्वारा प्राप्त किया जा सकता है तथा अनुरक्षित नहीं किया जाता है। अतः पर-पक्षकार से सम्बन्धित सूचना को धारा 11 के अधीन प्रक्रिया का अनुसरण करने के पश्चात् प्राप्त किया जा सकता है। मूल्यांकित उत्तर पुस्तिकायें संविधि के अनुसार सूचना होगी क्योंकि यह धारा 2 (च) के अन्तर्गत परीक्षक की राय को समाहित करते हुए अभिलेख का दस्तावेज हो जाती है। दिनेश सिन्हा बनाम भारतीय विद्यालय प्रमाण-पत्र परीक्षाओं का परिषद के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है। सांवलियाजी मंदिर मण्डल, राजस्थान बनाम मुख्य सूचना आयुक्त, राजस्थान, जयपुर, ए आई आर 2016 के वाद में न्यास की परिषदीय बैठक की प्रक्रिया तथा बैठक की कार्यसूची की सूचना की मांग की गयी थी। राज्य अधिनियम के अधीन न्यास का गठन किया गया था, जो कि “लोक प्राधिकारी” की परिभाषा के अन्तर्गत आता है। इस प्रकार ईप्सित सूचना धारा 8 के अन्तर्गत उल्लिखित किसी भी अपवाद खण्ड के अन्तर्गत नहीं आती। न्यास आवेदक को सूचना प्रकट करने के लिए दायी माना गया।