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26 साल तक पुलिस सर्विस में रहा कांस्टेबल निकला पाकिस्तानी, हाईकोर्ट ने लिया यह फैसला

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जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व कांस्टेबल के निर्वासन पर अस्थायी रोक लगा दी है। कोर्ट ने यह देखते हुए रोक लगाई कि अदालत में प्रस्तुत राजस्व रिकॉर्ड जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में उनके वास्तविक निवास का प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करते हैं। जस्टिस राहुल भारती की पीठ सरकार द्वारा उन्हें और उनके परिवार को जारी किए गए निर्वासन नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह वर्षों से पुंछ जिले में रह रहे हैं और उन्होंने 26 वर्षों से अधिक समय तक जम्मू-कश्मीर पुलिस में भी सेवा की है।
याचिकाकर्ताओं ने नियंत्रण रेखा (LOC) के पास स्थित सलवाह गांव में भूमि के स्वामित्व को दर्शाने वाले राजस्व दस्तावेज प्रस्तुत किए, जो स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि परिवार इस क्षेत्र में लंबे समय से निवास कर रहा है। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि निर्वासन आदेश अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक दोनों था। उन्होंने बताया कि वे भारत में ही रहे हैं, उनकी जड़ें स्थानीय हैं और वे समुदाय का हिस्सा हैं। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों पर गौर करते हुए डिप्टी कमिश्नर को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं द्वारा अपने नाम पर रखी गई संपत्ति की स्थिति के संबंध में हलफनामा पेश करें।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इस बीच याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों को तब तक निर्वासित न किया जाए, जब तक कि मामले की पूरी सुनवाई न हो जाए। पुलिस ने याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों, जिसमें उसके भाई और बहन शामिल हैं, उनको स्थानीय थाने में बुलाया और उन्हें निर्वासित करने के उद्देश्य से अटारी ले जाया गया, उनका दावा है कि वे पाकिस्तानी नागरिक हैं। याचिकाकर्ता के पिता मूल रूप से सलवाह के रहने वाले हैं, लेकिन 1965 के युद्ध के दौरान उन्हें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। परिवार 1980 के दशक में भारत लौट आया और पुंछ प्रशासन द्वारा उन्हें पासपोर्ट और निवास प्रमाण पत्र सहित आवश्यक दस्तावेज जारी किए गए।

केस-टाइटल: इफ़्तिख़ार अली बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश, 2025

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