उत्तर प्रदेश के अयोध्या ज़िले की एक अदालत ने मंगलवार को लोक-गायिका नेहा सिंह राठौर के खिलाफ पहलगाम आतंकी हमले पर सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दर्ज आपराधिक शिकायत अस्वीकार्य मानते हुए खारिज की। अपर सिविल जज (सीनियर डिवीजन)/ACJM एकता सिंह ने अपने आदेश में कहा कि यह शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है और शिकायतकर्ता को इसे दर्ज कराने का कोई अधिकार नहीं है। शिकायत शिवेंद्र सिंह द्वारा वकील मार्तंड प्रताप सिंह के माध्यम से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 210 के तहत दायर की गई थी।
शिकायत में आरोप था कि नेहा सिंह राठौर ने हालिया पहल्गाम आतंकी हमले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को झूठे तरीके से जोड़ा ताकि वह जनभावनाओं को भड़काकर चुनावी लाभ ले सकें। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि उनके बयानों से देशभर में अशांति फैली है और इससे देश को गृहयुद्ध की ओर धकेला जा रहा है। शिकायत में देशद्रोह जैसे अपराधों का भी आरोप लगाया गया था। अदालत ने पहले यह स्पष्ट किया कि मुख्य आरोप यह है कि राठौर ने प्रधानमंत्री और अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ अशोभनीय और अनुचित टिप्पणियां करके मानहानि की।
इसके बाद कोर्ट ने BNSS की धारा 222(2) का उल्लेख किया, जिसके तहत यदि किसी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, केंद्रीय या राज्य मंत्री अथवा किसी लोक सेवक के आधिकारिक कार्यकलाप से जुड़ी मानहानि हुई तो उस मामले में सेशन कोर्ट केवल सरकारी वकील द्वारा दायर लिखित शिकायत पर ही संज्ञान ले सकता है। कोर्ट ने यह भी बताया कि धारा 222(4) के अनुसार ऐसी शिकायत तभी की जा सकती है, जब केंद्र या राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त हो, जो इस मामले में नहीं ली गई थी।
कोर्ट का निष्कर्ष: इस शिकायत में जिन नेताओं की मानहानि का आरोप है, वे सभी संवैधानिक पदों पर हैं, इसलिए बिना सरकारी स्वीकृति और बिना सरकारी वकील की शिकायत के यह मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। साथ ही अदालत ने BNSS की धारा 217 का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य के विरुद्ध अपराधों (Chapter VII of BNS) में तब तक कोई भी कोर्ट संज्ञान नहीं ले सकती, जब तक केंद्र या राज्य सरकार की पूर्व अनुमति न हो जो इस मामले में नहीं दी गई।
जहां तक देशद्रोह के आरोप का सवाल है, अदालत ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) में अब देशद्रोह की परिभाषा नहीं है। इसका निकटतम प्रावधान धारा 152 है, जो Chapter VII में आता है। इसलिए इस पर भी पूर्व अनुमति आवश्यक थी। अंततः कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता को यह शिकायत दायर करने का कोई अधिकार (locus) नहीं था और बिना वैधानिक प्रक्रिया का पालन किए यह शिकायत दायर की गई। अतः यह अस्वीकृत की जाती है।