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भ्रष्टाचार मामलों में अग्रिम जमानत केवल तभी दी जा सकती है जब FIR राजनीतिक प्रतिशोध या प्रथम दृष्टया झूठे फंसाने के आधार पर दर्ज की गई हो: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

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पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार के मामलों में अग्रिम जमानत केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दी जा सकती है। इसके लिए अदालत को प्रथम दृष्टया यह संतुष्ट होना आवश्यक है कि शिकायत झूठे फंसाने, राजनीतिक प्रतिशोध, या स्पष्ट रूप से निराधार आरोपों पर आधारित है। जस्टिस मंजीरी नेहरू कौल ने कहा, “यह कानून अच्छी तरह से स्थापित है और माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘देविंदर कुमार बंसल बनाम पंजाब राज्य’ मामले में पुनः पुष्टि की गई कि भ्रष्टाचार अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों में अग्रिम जमानत केवल अत्यंत दुर्लभ परिस्थितियों में दी जा सकती है। अदालत को प्रथम दृष्टया यह संतुष्टि होनी चाहिए कि या तो झूठा फंसाया गया, या मामला राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है अथवा शिकायत स्पष्ट रूप से निराधार है।”
यह टिप्पणी न्यायालय ने एक पटवारी, केवल सिंह, की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दी, जिन्हें उनके सह-आरोपी बलकार सिंह (सुपरिंटेंडेंट, पंचायत समिति कार्यालय) के साथ शिकायतकर्ता से 60,000 रुपये की अवैध रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। FIR भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि कथित रिश्वत की बरामदगी याचिकाकर्ता से नहीं बल्कि सह-आरोपी बलकार सिंह से हुई थी और उन्हें झूठा फंसाया गया।
वकील ने FIR की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला मुख्य रूप से एक अप्रमाणित ऑडियो रिकॉर्डिंग पर आधारित है, जो याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 7 के तत्वों को नहीं दर्शाती। दोनों पक्षकारों की दलीलों को सुनने के बाद न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष का मामला केवल मौखिक शिकायत पर आधारित नहीं है बल्कि दस्तावेजी और पुष्टिकरण सामग्री, जैसे ऑडियो रिकॉर्डिंग, कानून के अनुसार किए गए ट्रैप कार्यवाही और सह-आरोपी से बरामद की गई रिश्वत की रकम से भी समर्थित है।
जस्टिस कौल ने कहा कि आरोपों की गंभीरता सरकारी पद के दुरुपयोग और जनविश्वास के उल्लंघन को दर्शाती है। न्यायालय ने कहा, “याचिकाकर्ता की प्रत्यक्ष संलिप्तता न होने की दलील तथ्यात्मक मुद्दा है, जिसे इस स्तर पर अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करते हुए निर्णीत नहीं किया जा सकता।” न्यायालय ने यह भी कहा कि यह तथ्य कि जांच रिपोर्ट 29.03.2024 को पहले ही सौंप दी गई, यह नहीं दर्शाता कि पहले या बाद में कोई गलत आचरण नहीं हुआ, विशेष रूप से आरोपित अवैध मांग और लेन-देन की पृष्ठभूमि में। न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि प्राथमिक सामग्री, जैसे ट्रैप कार्यवाही, आरोपों को प्रथम दृष्टया पुष्ट करती है और याचिकाकर्ता की संलिप्तता को दर्शाती है। आरोपों की गंभीरता, याचिकाकर्ता द्वारा धारण किए गए सरकारी पद की जिम्मेदारी और हिरासत में पूछताछ के माध्यम से विस्तृत जांच की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया।

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