पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पंजाब पुलिस नियमावली (Punjab Police Rules – PPR) के तहत भ्रष्टाचार के मामलों में पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट (DM) की सहमति आवश्यक नहीं है। जस्टिस जगमोहन बंसल ने नियम 16.40 का हवाला देते हुए कहा, “प्राधिकरणों को प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के अनुसार न्यायिक अभियोजन या विभागीय कार्रवाई प्रारंभ करनी होती है। नियम 16.40 के तहत जिला मजिस्ट्रेट की सहमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः प्रतिवादी द्वारा विभागीय कार्रवाई विधिक रूप से शुरू की गई।”
कोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act – PC Act) के तहत मामला दर्ज है, जो एक विशेष कानून है। इसलिए उनकी अभियोजन प्रक्रिया का पंजाब पुलिस नियमावली से कोई संबंध नहीं है। आगे कहा गया, “PPR के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ नियम 16.40 एवं 16.24 के तहत विभागीय कार्रवाई की जा रही है और इसके लिए जिला मजिस्ट्रेट की सहमति आवश्यक नहीं है।” ये टिप्पणियां उस समय दी गईं जब कोर्ट हरियाणा पुलिस के कर्मियों द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी, जिनमें FIR के लंबित रहने के दौरान विभागीय जांच को रोके जाने की मांग की गई थी। इन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत मामला दर्ज है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि विभागीय कार्रवाई शुरू करने के लिए डीएम की सहमति अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा कि यह नियम पुलिसकर्मियों की रक्षा के लिए बनाया गया, लेकिन याचिकाकर्ताओं की यह दलील ग़लतफहमी पर आधारित है। “नियम यह कहता है कि यदि प्रारंभिक जांच या विवेचना से प्रथम दृष्टया यह सिद्ध होता है कि अपराध किया गया है, तो सामान्यतः न्यायिक अभियोजन शुरू किया जाना चाहिए।” हालांकि, किसी विशेष मामले में पुलिस अधीक्षक (SP) यह राय बना सकता है कि विभागीय कार्रवाई ही उचित है। ऐसे मामलों में यह सामान्य नियम से विपरीत होता है। इसलिए डीएम की सहमति लेने का प्रावधान रखा गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायिक कार्रवाई के बजाय विभागीय कार्रवाई क्यों हो रही है और यह निर्णय स्वतंत्र रूप से लिया गया।
कोर्ट ने एक अन्य मुद्दे पर भी विचार किया, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यदि इस समय विभागीय कार्रवाई को रोका नहीं गया। उन्हें अपना बचाव पेश करना पड़ा तो इससे आपराधिक मुकदमे में उनकी स्थिति पर असर पड़ेगा। कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज करते हुए कहा, “यह कहा जा सकता है कि प्रतिवादी पुलिस रिपोर्ट से परे नहीं जा सकते, अतः यदि याचिकाकर्ता विभागीय कार्रवाई में अपना बचाव प्रस्तुत करते हैं तो इससे उन्हें कोई पूर्वग्रह (prejudice) नहीं होगा।” इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
टाइटल: विनोद कुमार बनाम राज्य हरियाणा एवं अन्य